भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस सुकूते ‍फ़िज़ा में खो जाएं / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी }} <poem> इस सुकूते ‍फ़िज़ा में ख...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
 
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>   
 
<poem>   
  
पंक्ति 14: पंक्ति 15:
 
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं  
 
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं  
  
िज़न्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
+
ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
 
सोच लें और उदास हो जाएं  
 
सोच लें और उदास हो जाएं  
  

22:54, 3 मार्च 2020 का अवतरण

  

इस सुकूते ‍फ़िज़ा में खो जाएं
आसमानों के राज हो जाएं

हाल सबका जुदा-जुदा ही सही
किस पॅ हँस जाएं किस पॅ रो जाएं

राह में आने वाली नस्लों के
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं

ज़िन्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएं

रात आयी फ़ि‍राक दोस्तो नहीं
किससे कहिए कि आओ सो जाएं