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"ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

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परब्रह्म  को<br>
 
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उस  आदि  शक्ति  को,<br>
 
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:जिसका संबल अविराम,<br>
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जिसका संबल अविराम,<br>
:मेरी  शिराओ  में प्रवाहित है|
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:उसे  अपनी अकिंचनता,<br>
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उसे  अपनी अकिंचनता,<br>
::अनन्यता<br>
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अनन्यता<br>
 
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परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,<br>
 
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उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,<br>
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परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।<br>
 
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19:57, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण




समर्पण

परब्रह्म को
उस आदि शक्ति को,
जिसका संबल अविराम,
मेरी शिराओ में प्रवाहित है| उसे अपनी अकिंचनता,
अनन्यता
एवं समर्पण
से बड़ी और क्या पूजा दूँ ?

शान्ती मंत्र
पूर्ण मिदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये,
पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते

परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,
परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।