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"उजाले के पक्ष में / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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01:42, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
अन्धेरा मन के भीतर था
उजाले की राह रोक कर खड़ा
अन्धेरे के खिलाफ़
क्या कर सकता था मैं
ख़ुद को जला देने के अलावा?
उजाला हतवाक
कि एक इन्सान जल रहा था
उसके पक्ष में खड़ा-खड़ा।
एक कवि
लिख रहा था
इस समूचे घटना-क्रम को
अपनी कविता में
इस तरह।
रचनाकाल : 1991, विदिशा