भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उत्केंद्रित? / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=कुंवर नारायण | + | |रचनाकार = कुंवर नारायण |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
मैं ज़िंदगी से भागना नहीं | मैं ज़िंदगी से भागना नहीं | ||
− | + | उससे जुड़ना चाहता हूँ। - | |
− | उससे जुड़ना चाहता | + | |
− | + | ||
उसे झकझोरना चाहता हूँ | उसे झकझोरना चाहता हूँ | ||
− | |||
उसके काल्पनिक अक्ष पर | उसके काल्पनिक अक्ष पर | ||
− | |||
ठीक उस जगह जहाँ वह | ठीक उस जगह जहाँ वह | ||
− | + | सबसे अधिक बेध्य हो कविता द्वारा। | |
− | सबसे अधिक बेध्य हो कविता | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
उस आच्छादित शक्ति-स्त्रोत को | उस आच्छादित शक्ति-स्त्रोत को | ||
− | |||
सधे हुए प्रहारों द्वारा | सधे हुए प्रहारों द्वारा | ||
− | |||
पहले तो विचलित कर | पहले तो विचलित कर | ||
− | |||
फिर उसे कीलित कर जाना चाहता हूँ | फिर उसे कीलित कर जाना चाहता हूँ | ||
− | |||
नियतिबद्ध परिक्रमा से मोड़ कर | नियतिबद्ध परिक्रमा से मोड़ कर | ||
− | |||
पराक्रम की धुरी पर | पराक्रम की धुरी पर | ||
− | |||
एक प्रगति-बिन्दु | एक प्रगति-बिन्दु | ||
− | |||
यांत्रिकता की अपेक्षा | यांत्रिकता की अपेक्षा | ||
− | |||
मनुष्यता की ओर ज़्यादा सरका हुआ... | मनुष्यता की ओर ज़्यादा सरका हुआ... | ||
+ | </poem> |
15:52, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैं ज़िंदगी से भागना नहीं
उससे जुड़ना चाहता हूँ। -
उसे झकझोरना चाहता हूँ
उसके काल्पनिक अक्ष पर
ठीक उस जगह जहाँ वह
सबसे अधिक बेध्य हो कविता द्वारा।
उस आच्छादित शक्ति-स्त्रोत को
सधे हुए प्रहारों द्वारा
पहले तो विचलित कर
फिर उसे कीलित कर जाना चाहता हूँ
नियतिबद्ध परिक्रमा से मोड़ कर
पराक्रम की धुरी पर
एक प्रगति-बिन्दु
यांत्रिकता की अपेक्षा
मनुष्यता की ओर ज़्यादा सरका हुआ...