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उत्केंद्रित? / कुंवर नारायण

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मैं ज़िंदगी से भागना नहीं

उससे जुड़ना चाहता हूँ । -

उसे झकझोरना चाहता हूँ

उसके काल्पनिक अक्ष पर

ठीक उस जगह जहाँ वह

सबसे अधिक बेध्य हो कविता द्वारा ।



उस आच्छादित शक्ति-स्त्रोत को

सधे हुए प्रहारों द्वारा

पहले तो विचलित कर

फिर उसे कीलित कर जाना चाहता हूँ

नियतिबद्ध परिक्रमा से मोड़ कर

पराक्रम की धुरी पर

एक प्रगति-बिन्दु

यांत्रिकता की अपेक्षा

मनुष्यता की ओर ज़्यादा सरका हुआ...