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उनका आना / वीरू सोनकर

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उनका आना
किसी ठन्डे मौसम के आने की आहट नहीं थी

वे आये,
क्योंकि वे कहीं और नहीं जा सकते थे
सड़क पर पड़ी हुई धूल को उड़ाते
असमय आ धमके गर्म मौसम की खबर जैसे

पर वो शहर किसी मछली की चिकनी पीठ में बदल गया था
और टिकने की लाख कोशिशों के बाद भी
वे फिसल गए

वहाँ,
उस अगले शहर में,
जहाँ उन्हें आना तो नहीं था
और जिस शहर को मछली की पीठ में बदलना भी नहीं था

जबकि उन्होंने चाहा था कहीं टिक कर सुस्ताना
और ठन्डे मौसम में बदलना
पर वह फिसलते रहे और देखते रहे
कछुए की पीठ से शहरों को मछली में बदलते

एक चलती हुई सड़क
किसी अनिवार्य यथार्थ की तरह उनके पैरो में बंधी थी
और जो कभी नहीं बदलती थी!