भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता! | उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता! | ||
− | + | जहाँ पर ज़िन्दगी है, मै वहीं होता तो क्या होता! | |
बहुत से वक्त ऐसे भी कटे हैं जब कि घबराकर | बहुत से वक्त ऐसे भी कटे हैं जब कि घबराकर |
02:44, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता!
जहाँ पर ज़िन्दगी है, मै वहीं होता तो क्या होता!
बहुत से वक्त ऐसे भी कटे हैं जब कि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीँ होता तो क्या होता!
हुआ है दिल तो घायल बेरुख़ी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता!
गुलाब! अच्छे हैं काँटें भी जो सीने से लगाए हैं
सहारा यह भी जीने का नहीँ होता तो क्या होता!