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"उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीँ होता तो क्या होता! | ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीँ होता तो क्या होता! | ||
01:06, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता!
जहाँ पर ज़िन्दगी है, मै वहीं होता तो क्या होता!
बहुत से वक़्त ऐसे भी कटे हैं जब कि घबराकर
ये सोचा मैंने मन में, मैं नहीँ होता तो क्या होता!
हुआ है दिल तो घायल बेरुख़ी से ही उन आँखों की
जो थोड़ा प्यार भी उनमें कहीं होता तो क्या होता!
गुलाब! अच्छे हैं काँटें भी जो सीने से लगाए हैं
सहारा यह भी जीने का नहीँ होता तो क्या होता!