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उसके आंगन मैं कोई फूल झरा तो होगा / कांतिमोहन 'सोज़'

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उसके आँगन मैं कोई फूल झरा तो होगा ।
ख़त मेरा पाके वो बेदर्द हँसा तो होगा ।।

भूलने में मुझे हल्की-सी ख़लिश लाज़िम थी
दिल की दीवार से एक नक़्श मिटा तो होगा ।

मैं न कहता था कि माज़ी का कोई ज़िक्र न कर
बात निकली है तो अब दर्द ज़रा तो होगा ।

लाख फ़ौलाद हो इंसान तो इंसान है फिर
दिल जो टूटेगा तो कुछ आहो-बुका तो होगा ।

भूलने का मुझे मौक़ा ही दिया है किसने
तीर पर तीर तो फिर ज़ख़्म हरा तो होगा ।

कोई हीला तो बने जी के बहल जाने का
ख़ुश न होगा मेरी आहों से ख़फ़ा तो होगा ।

सोज़ चुपचाप सज़ा काट ले तकरार न कर
नाम के आगे तेरे जुर्मे-वफ़ा तो होगा ।।

2016 में मुकम्मल हुई