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"उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की -- / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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सो गए जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की!
 
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आज भाती हो न उसको तेरी पंखडियाँ, गुलाब!
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08:13, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की --
'कोई अब हमसे करे चर्चा न पिछली रात की'

हमने यह समझा कि प्याला है हमारे वास्ते
उसने कुछ ऐसी अदा से मुस्कुराकर बात की

है घड़ी भर दिन अभी खिलते हैं क्या गुल, देखिये
यों तो हरदम लग रही है शह हमारे मात की

राख पर अब उनके लहरायें समुन्दर भी तो क्या
सो गए जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की!

आज भाती हो न उसको तेरी पंखड़ियाँ, गुलाब!
कल मचेगी धूम दुनिया भर में इस सौग़ात की