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उस से मत कहना मेरी बे-सर-ओ-सामानी / इन्दिरा वर्मा

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उस से मत कहना मेरी बे-सर-ओ-सामानी तक
 वो न आ जाए कहीं मेरी परेशानी तक

 मैं तो कुछ भी नहीं करती हूँ मोहब्बत के लिए
 इश्क़ वाले तो लुटा देते हैं सुल्तानी तक

 कैसे सहरा में भटकता है मेरा तिश्ना लब
 कैसी बस्ती है जहाँ मिलता नहीं पानी तक

 ना-ख़ुदा देख चुका काली घटा के तेवर
 बाद-बाँ खोल दिए उस ने भी तुग़्यानी तक

 पुर-ख़तर राह मेरी होने लगी है आसाँ
 ख़ौफ़ किस का है भला तेरी निगह-बानी तक