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"ऊँची सी उसासैँ लै लै पूछत है परोसिन सोँ / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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ऊँची सी उसासैँ लै लै पूछत है परोसिन सोँ , | ऊँची सी उसासैँ लै लै पूछत है परोसिन सोँ , |
23:08, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ऊँची सी उसासैँ लै लै पूछत है परोसिन सोँ ,
मेरे उर कठिन कठोर भए बाँके हैँ ।
ताके अति सोचन तेँ कछू ना सोहात मोहिँ ,
कीजिये उपाय ये पिरात नहिँ पाके हैँ ।
मदन कहै तू ना डेराय अलबेली बाल ,
ये है रति जाल जीव पोखन सुधा के हैँ ।
होत उर जाके पीर होत नहिँ ताके ,
जौन इन्हैँ कोऊ ताकै पीर होत उर ताके हैँ ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।