भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऎसा ही समय रहा होगा / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह= }} <Poem> ठीक ऐसा ही समय रहा होगा ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:19, 23 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण


ठीक ऐसा ही समय रहा होगा
जब किसी ने अपने मित्र से
किया होगा
पहली बार विश्वासघात

स्त्रियाँ शालीनता भूल दौड़ पड़ी होंगी निर्वस्त्र
बाज़ारों की तरफ़
तरसे होंगे बुजुर्ग अपनी औलादों की सेवा को

आकाश में ऐसे ही समय सुराख़ हो गया होगा
बरसा होगा
मगर बूंदों में नहीं
सब जगह भी नहीं
कुछेक को ही मिला होगा
गला तर रखने को पानी

ज़हरीली हो गई होगी हवा
सभागार सुलग उठे होंगे
शवों की कतारों के बावजूद

शहर झूमते होंगे मदमस्त
बिंध जाती होगी आदमी की छाती

जानवर भय से थरथराते होंगे
राक्षस देवताओं पर टूट पड़े होंगे

ऐसा ही समय रहा होगा जब
समय ने स्वयं आ कर
बचाया होगा आदमी को।