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एक अनजान बिसुधपन में जो हुआ सो ठीक / गुलाब खंडेलवाल

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एक अनजान बिसुधपन में जो हुआ सो ठीक
सोच किस-किसका हो जीवन में, जो हुआ सो ठीक

प्यार के एक मधुर क्षण में, जो हुआ सो ठीक
दोष होता नहीँ यौवन में, जो हुआ सो ठीक

हट गयी चाँद की आँखों से झिझक पिछली रात
काँपती झील के दर्पण में जो हुआ सो ठीक

आँसुओं में दी बहा याद हमारी उसने
कोई काँटा न रहा मन में, जो हुआ सो ठीक

कुछ कहीं भी न हुआ मैं तो क्या हुआ इससे!
और क्या होता एक क्षण में, जो हुआ सो ठीक

प्यार की राह में माना कि मिट गए हैं गुलाब
गंध तो रह गयी उपवन में, जो हुआ सो ठीक