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एक कविता के दो ड्राफ्ट्स और दो ड्राफ्ट्स से बनी एक कविता / कुमार विक्रम

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ड्राफ्ट १

मैं प्रार्थना करता हूँ
मेरे शहर का सबसे अमीर आदमी
और भी अमीर हो जाये
मैं चाहता हूँ
मेरे शहर का सबसे बड़ा गैंगस्टर
और भी बड़ा गैंगस्टर हो जाए
मेरी दिली ख्वाहिश है
शहर की सबसे नामी तवायफ़
और भी नामी हो जाए
मेरी तमन्ना है
मेरे शहर का सबसे बड़ा दलाल
और भी बड़ा दलाल बन जाए
मैं उस दिन को देखने के लिए मरा जा रहा हूँ
जब मेरे शहर का सबसे बड़ा शोषक
और भी बड़ा शोषक बन जाएगा
जब से मुझे यह इल्म हुआ है
कि जब मेरे शहर के सबसे बड़े
अमीर, गैंगस्टर, तवायफ, दलाल और शोषक
हो जाएँगे पहले से भी
और अधिक नीच, कमीने
घिनौने, सस्ते और दरिंदे
तब मेरा शहर और शहर के बाशिंदे
अन्य सभी शहरों पर
और उनके शहरियों पर
चला पाएँगे डंडे।

ड्राफ्ट २

मैं प्रार्थना करता हूँ
मेरे शहर का सबसे अमीर आदमी
और भी अमीर हो जाये
ताकि इस शहर की गरीबी जाए
मैं चाहता हूँ
मेरे शहर का सबसे बड़ा गैंगस्टर
और भी बड़ा गैंगस्टर हो जाए
ताकि शहर सुसंस्कृत हो जाए
मेरी दिली ख्वाहिश है
शहर की सबसे नामी तवायफ़
और भी नामी हो जाए
ताकि शहर की महिलाएँ सभ्य रह पाएँ
मेरी तमन्ना है
मेरे शहर का सबसे बड़ा दलाल
और भी बड़ा दलाल बन जाए
ताकि शहर से हेरा-फेरी ख़त्म हो जाए
मैं उस दिन के लिए मरा जा रहा हूँ
जब मेरे शहर का सबसे बड़ा शोषक
और भी बड़ा शोषक बन जाए
ताकि शोषितों को मुक्ति मिल जाए
फिलहाल मैं कब्र में आराम फ़रमा रहा हूँ
और जीने की फरमाइशें कर रहा हूँ।

दो ड्राफ्ट्स से बनी एक कविता

मेरे शहर का अमीर और भी अमीर हुआ जा रहा है
और मैं उससे आती अमीरियत की खुशबु सूंघने को बेताब हुआ जा रहा हूँ
मेरे शहर का गैंगस्टर खून की रंगीन होली खेल रहा है
और मैं उसमे रंगने को मरा जा रहा हूँ
मेरे शहर की तवायफ़ के साक्षात्कार मुखपृष्ठों पर आ रहे हैं
और मैं उसके संग फोटो खिंचवाने को भीड़ में लथ-पथ हुआ जा रहा हूँ
मेरे शहर का दलाल शहर बेचने की कवायद कर रहा है
और मैं उसके साथ बिकने को बेचैन हो रहा हूँ
मेरे शहर का शोषक खून चूसने के नए तरकीबें ईज़ाद कर रहा है
और मैं दौर दौर कर अपने खून की बोतलें उस तक पहुँचा रहा हूँ
मैं फिलहाल जीने की फरमाइशें पूरी कर रहा हूँ
और समयाभाव में साथ साथ अपनी कब्र भी खोद रहा हूँ

सितंबर २०१४ में 'जनसत्ता' में प्रकाशित