भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन पाँओं तले धरती न होगी! / प्रतिभा सक्सेना

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:03, 28 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} {{KKCatKavita}} <poem> याद आत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद आती है मुझे तुमने रहा था,
एक दिन पाँओं तले धरती न होगी!
जग कहेगा गीत ये जीवन भरे हैं,
ज़िन्दगी इन स्वरों में बँधती न होगी!

आज पाँओं के तले धरती नहीं है,
दूर हूँ मैं एक चिर-निर्वासिता-सी,
काल के इस शून्य रेगिस्तान पथ पर,
चल रही हूँ तरल मधु के कण लुटाती!

उन स्वरों के गीत जो सुख ने न गाये,
स्वर्ग सपनों की नहीं जो गोद खेले,
हलचलों से दूर अपने विजन पथ पर
छेड़ना मत विश्व, गाने दो अकेले!

कहां इंसां को मिला है वह हृदय,
जिसको कभी भी कामना छलती न होगी
याद फिर आई मुझे तुमने कहा था,
एकदिन पाँओं तले धरती न होगी