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एक परी / सुरेश विमल

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एक परी
प्यारी प्यारी-सी
मेरे सपनों में आती है।

पंख दूध के
जैसे उसके
मुखड़ा दीये की बाती है।

नेत्र प्यार की
भरी गगरिया
छलक छलक छलकाती है।

दांत मोतियों की
माला हैं
हंसती तो दिखलाती है।

अपनी रेशम की
बाहों का
झूला मुझे झुलाती है।

दूर गगन में
ले जाती है
अपने पंखों पर बैठा कर
परी लोक की सैर कराती
है मुझको इठला-इठला कर

रंग-बिरंगे फूलों से
झोली मेरी
भर जाती है।