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Kavita Kosh से
सफर शब्द की वर्तनी शुद्ध की
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफ्रर सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में