भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक मज़बूर माँ / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भावना कुँअर }} Category:चोका <poem> </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
  
 
+
जी हाँ, मैं माँ हूँ 
 
+
एक मज़बूर माँ
 +
मैं भी होती थी
 +
बड़ी धनवान औ
 +
सक्षम कभी
 +
हो गई मज़बूर
 +
मैं आज बड़ी।
 +
मेरे रिश्तों की टूटी
 +
जब से कड़ी।
 +
हुई मुझसे इक
 +
बड़ी -सी भूल
 +
बँध करके मैंने
 +
मोहपाश में
 +
अपना घर,धन
 +
सब दे डाला।
 +
अब बूढ़ी हो चली
 +
काँपते हाथ
 +
पर पेट की भूख
 +
खूब सताती।
 +
घुटनों से बेकार
 +
पर फिर भी
 +
घर-घर हूँ जाती।
 +
पूरे दिन मैं
 +
मेहनत करती
 +
तब जाकर
 +
कहीं भूख मिटाती।
 +
सँभाले मैंने
 +
पाँच-पाँच थे बेटे।
 +
पर उनसे
 +
अब देखो ये कैसे
 +
लाचार, बूढ़ी
 +
बेबस,अकेली माँ
 +
नहीं सँभाले जाती।
  
 
</poem>
 
</poem>

04:16, 11 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


जी हाँ, मैं माँ हूँ
एक मज़बूर माँ
मैं भी होती थी
बड़ी धनवान औ
सक्षम कभी
हो गई मज़बूर
मैं आज बड़ी।
मेरे रिश्तों की टूटी
जब से कड़ी।
हुई मुझसे इक
 बड़ी -सी भूल
बँध करके मैंने
मोहपाश में
अपना घर,धन
सब दे डाला।
अब बूढ़ी हो चली
काँपते हाथ
पर पेट की भूख
खूब सताती।
घुटनों से बेकार
पर फिर भी
घर-घर हूँ जाती।
पूरे दिन मैं
मेहनत करती
तब जाकर
कहीं भूख मिटाती।
सँभाले मैंने
पाँच-पाँच थे बेटे।
पर उनसे
अब देखो ये कैसे
लाचार, बूढ़ी
बेबस,अकेली माँ
नहीं सँभाले जाती।