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एक रोज़-3 / लीलाधर मंडलोई

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एक रोज़ मैंने देखा तापहीन सूर्य
और एक अनोखा दृश्य
यह दोपहर का समय था
नीलकंठ की चोंच में आग का बिम्ब
उसकी उड़ान ठीक सूरज की सीध में थी


रचनाकाल : जुलाई 1991