भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक ‘उपास्य’ देव ही करते / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:29, 8 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग खमाच-ताल त्रिताल)
 
एक ‘उपास्य’ देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि-‌अनुसार॥
सर्वोपरि-कर्तव्य-धर्म है यही एक, जीवनका सार।
करें स्वकर्मोंसे उपासना उनकी ही, रख शुद्ध विचार॥