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"ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें <br> | दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें <br> | ||
किस ज़माने के आदमी तुम हो <br><br> | किस ज़माने के आदमी तुम हो <br><br> |
18:43, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण
रचनाकार: बशीर बद्र
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ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो
अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो