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"ओ गोरी! तेरा मन किसने छीना! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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तान मधुर भी हो नूपुर में  
 
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किन्तु और ही धुन  है उर में  
 
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ताल-छंद-लय-हीना
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तू तो रँगी श्याम के रँग में  
 
तू तो रँगी श्याम के रँग में  

02:37, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


ओ गोरी! तेरा मन किसने छीना!
और कहीं पर तार बँधे हैं, और कहीं है वीणा
 
अंग-अंग बजते हों सुर में
तान मधुर भी हो नूपुर में
किन्तु और ही धुन  है उर में
ताल-छंद-लय-हीना 
 
तू तो रँगी श्याम के रँग में
पातिव्रत्य निभे क्या जग में!
सौ मन की साँकल हो पग में
पड़े जहर भी पीना

ओ गोरी! तेरा मन किसने छीना!
और कहीं पर तार बँधे हैं, और कहीं है वीणा