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और तो कह दी सारी बात / सुरेश चन्द्र शौक़

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और तो कह दी सारी बात

कह न सके हम दिल की बात


वक़्त पड़ा तो मीठी बात

वरना किस ने पूछी बात


रूठ गए अहबाब मिरे

सुन न सके वो सच्ची बात


करता अपने मन की हूँ

सुन लेता हूँ सबकी बात


जान भी दे कर जाने—मन

मैं रक्खूँगा तेरी बात


ज़िक्र छिड़े तो ज़िक्र तेरा

बात चले ति तेरी बात


जिससे किसी को ठेस लगे

‘शौक़’ ! न कीजे ऐसी बात


अहबाब=मित्र