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कइसे करब सगाई! / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
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कइसे करब सगाई!
हम कँगला ही पास न कौड़ी
आज बढ़ल महँगाई!!
चान नियर धीआ के मुखड़ा
कइसे खोजम बरुआ तगड़ा
ई दहेज के काँटा खूँटा
कइसे उकनत भाई!
घर के बेटी काँट बनल हे
सब बरुअन के आँख गड़ल हे
ई गठरी माया के बोझा
उतरत कइसे माई!
घिरलइ अँखिया तरे अँधरिया
दुरदिन केहे घिरल बदरिया
साँझ सकेरे ढनक रहल ही
खेती भेल बटाई!
ई दहेज दुसमन बउड़ायल
सबके मन में हे पउढ़ायल
रिकटल रहल ही खखनल मन हे
किनका हम गोहराई!
अपने हाथे काँटा बुनली
अब चुभ रहलइ हे सिर धुनली
अभियो जो समाज नैं चेतल
डूबत खोदल खाई!