भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कब चलता है काम समय से कट के / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 29 अगस्त 2011 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब चलता है काम समय से कट के
सीखो नई सदी के लटके-झटके

पोथन्नों पर पोथन्ने पढ़कर किसने क्या पाया
सारी सुख-सुविधाएँ त्यागी, नाहक समय गंवाया
कॉलिज टॉप हुआ वो लड़का ट्वेन्टी क्वेशचन रट के
सीखो नई सदी के ........................................

दो धन दो को चार सिद्ध करते रह गए अभागे
सात पे नौ उनहत्तर बाँचा जिनने वो हैं आगे
करतब अजब गज़ब हैं भइया भ्रष्टाचारी नट के
सीखो नई सदी के ........................................

सस्ते में निपटीं सत्ताएँ सच्चे इंसानों की
दसों उंगलियाँ घी में रहतीं हैं बेईमानों की
देव खड़े ललचाएँ अमरित असुर गटागट गटके
सीखो नई सदी के ........................................

स्वयं रहो सिद्धान्तहीन सबको आदर्श रटाओ
जैसी सटती जाए जब तक जम कर खूब सटाओ
अच्छा रखो हाज़मा अपना खाए जाओ डट के
सीखो नई सदी के ........................................

रावण, कंस और दुर्योधन की धुकती है इक्कर
हार गए हैं राम, कृष्ण और अर्जुन ले ले कर टक्कर
अब किसमें दम है जो फोड़े पापों के ये मटके
सीखो नई सदी के .................