भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर / 'ज़फ़र' इक़बाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 5 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='ज़फ़र' इक़बाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> कब वो ज़ा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
जितनी भी मुश्किल में हूँ आसान कर देगा मुझे
रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख़ होंट
एक दो पल के लिए गुलदान कर देगा मुझे
रूह फूँकेगा मोहब्बत की मेरे पैकर में वो
फिर वो अपने सामने बे-जान कर देगा मुझे
ख़्वाहिशों का ख़ूँ बहाएगा सर-ए-बाज़ार-ए-शौक़
और मुकम्मल बे-ए-सर-ओ-सामान कर देगा मुझे
मुनहदिम कर देगा आ कर सारी तामीरात-ए-दिल
देखते ही देखते वीरान कर देगा मुझे
एक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़
रफ़्ता रफ़्ता इस क़दर सुनसान कर देगा मुझे
या तो मुझ से वो छुड़ा देगा ग़ज़ल-गोई 'ज़फ़र'
या किसी दिन साहब-ए-दीवान कर देगा मुझे