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करत विचित्र चरित्र नित परम मधुर नँदलाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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करत विचित्र चरित्र नित परम मधुर नँदलाल।
बालसुलभ मनमोदमय, अति अबोध सजि बाल॥
खेलत, दौरत, हँसत, लै मधुर सखनि कौं संग।
बछरा कौं रोकन चहत पकरि पूँछ, करि रंग॥
जोर करत बहु, रुकत नहिं पै बछरा बलवान।
घसिटत ताके सँग चलत भाजत श्रीभगवान॥
धन्य गोपबालक परम, धन्य-धन्य गोबत्स।
जिन के सँग आनँद लहत अनवधि आनँद-उत्स॥