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कल सुबह होने से पहले (कविता) / शलभ श्रीराम सिंह

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खुश होता हूँ :
गुलाबों को पैरों से रौंद कर !
कमल-सरोवर में
पागल हाथियों का झुण्ड देख कर !
हरी-भरी फसलों पर
ओले बरसा कर गए बादलों को
धन्यवाद देकर !
सचमुच बहुत खुश होता हूँ !
और
खिड़की से बाहर झाँकने लग जाता हूँ !
राशन की दूकान वाली भीड़ में
खलबली मचती है !
एक सेर चावल के लिए
दो आदमी मर जाते हैं !
दो आदमी !! एक सेर चावल !
दो अर्थियाँ !! कई जुलूस !!!
मैं कुहासे में
किसी नीली चोटी वाली पहाड़ी का होना
महसूस करता हूँ !
और एक नन्हीं खामोशी के बाद
इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि :
कल सुबह होने के पहले
हर आदमी को
गुलाबों को पैरों से रौंदना ही होगा !
कमल-सरोवर तक
पागल हाथियों का झुण्ड
लाना ही होगा !
हरी-भरी फ़सलों पर
ओले बरसाकर गए बादलों को
धन्यवाद देना ही होगा !
सचमुच खुश रहने के लिए ...
कल सुबह होने के पहले .... !