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कविताएँ दाँत नहीं हैं / अभिज्ञात

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आज तीसरे दिन भी
दाँतों में दर्द है
और दाँत
मेरे अस्तित्व को
अपने खोढ़रे में
घुसाड़ लेना चाहता है
अखिल ब्रह्मांड सहित
मुझे दु:ख है
कविताएँ दाँत नहीं हैं।