भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि ने लिखा है / मनीष यादव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:43, 2 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि ने लिखा है
बेटी एक उम्र के बाद माँ सी हो जाती है
प्रेम बांटने वाली ,
सबकी चिंता करने वाली ,
और खुद के प्रति मौन ..!

मगर मैं कविताई के ढोंग से परे होकर
सचमुच लिखना चाहता हूँ कि -

“सुनो ऐ लड़की ,
वह माँ तुम्हारी तरह स्कूल जाते हुये
खुद को देखती है तुममें

कभी दो चोटी बाँधे हुये
अपनी किसी बचपन की सहेली के हाथों में हाथ डाले ,

तो कभी किसी छोटे भाई को चिढ़ाते हुये ,

या फिर कभी किसी सफेद और नीले चेक शर्ट वाले लड़के से खुद की नजरें चुराते हुये”

किंतु जब मां को तुम इतनी आसानी से कह देती हो
तुम नहीं समझोगी दु:ख हमारा

उस क्षण निश्चित ही तुम्हें सोचना चाहिये कि
माँ की भी एक प्रेम कहानी जरूर रही होगी?

और अंततः मैं ये चाहता हूँ कि
हर उस माँ की तरफ से तुम महसूस करो

कि बेटी की शादी के बाद विदाई के समय
एक माँ अपनी बेटी के साथ-साथ
खुद के बचपने को भी दूसरी बार विदा कर रही होती है।‌