भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 16 जनवरी 2010 का अवतरण (१०-कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’ का नाम बदलकर कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंज)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की,
गुंजनि की माला की मिसाल छवि छावै ना ।
कहै रतनाकर रतन मैं किरीट अच्छ,
मोर-पच्छ-अच्छ-लच्छ असहू सु-भावै ना ॥
जसुमति मैया की मलैया अरु माखन कौ,
कामधेनु गोरस हूँ गूढ़ गुन आवै ना ।
गोकुल की रज के कनूका औं तिनूका सम,
संपति त्रिलोक की बिलोकन मैं आवै ना ॥10॥