भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अमीर खुसरो
 
|रचनाकार=अमीर खुसरो
 
}}  
 
}}  
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatKahMukariyan}}
 
<poem>
 
<poem>
 
१.  
 
१.  
पंक्ति 93: पंक्ति 93:
 
रूप रंग सब वा का चाख   
 
रूप रंग सब वा का चाख   
 
भोर भई जब दिया उतार   
 
भोर भई जब दिया उतार   
सखी साजन? ना सखि हार!   
+
सखि साजन? ना सखि हार!   
  
 
१६.  
 
१६.  
पंक्ति 117: पंक्ति 117:
 
वा बिन सब जग लागे फीका  
 
वा बिन सब जग लागे फीका  
 
वा के सर पर होवे कोन  
 
वा के सर पर होवे कोन  
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! ,लोन(नमक)   
+
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)   
  
 
२०.  
 
२०.  
पंक्ति 131: पंक्ति 131:
 
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
 
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!
  
 +
22.
 +
बरसा-बरस वह देस में आवे,
 +
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
 +
वा खातिर मैं खरचे दाम,
 +
ऐ सखि साजन न सखि! आम।।
 +
 +
23.
 +
नित मेरे घर आवत है,
 +
रात गए फिर जावत है।
 +
मानस फसत काऊ के फंदा,
 +
ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।
 +
 +
24.
 +
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
 +
मीठी प्यारी बातें करे।
 +
श्याम बरन और राती नैंना,
 +
ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।
 +
 +
25.
 +
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
 +
दें दुहाई मन को हरें,
 +
कभू करत है मीठे बैन,
 +
कभी करत है रुखे नैंन।
 +
ऐसा जग में कोऊ होता,
 +
ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।
 
</poem>
 
</poem>

11:16, 19 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

१.
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!

२.
लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!

३.
रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!

४.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!

५.
ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!

६.
जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!

७.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!

८.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!

९.
अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!

१०.
आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!

११.
अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!

१२.
शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन!

१३.
जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!

१४.
बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!

१५.
सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन? ना सखि हार!

१६.
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!

१७.
सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
ऐ सखि साजन? ना सखि सपना!

१८.
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम!

१९.
सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)

२०.
सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)

21.
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!

22.
बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखि साजन न सखि! आम।।

23.
नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।

24.
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।

25.
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।