भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कारीकारी कोयली के गुरतुर हे बानी / शकुंतला तरार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 15 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला तरार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये कारी-कारी कोयली के गुरतुर हे बानी
वो तो गा के सुनावय जिनगी के कहानी
मोर गाँव मा,
मोर गाँव के कहानी ला सुनावय
कहानी ला सुनावय झूम-झूम के

निहर-निहर के वो माटी ल बनावय सोना
मिहनत के ओगराय पछिना बदत हे मितान दौना
जाँगर ला खपाके गढ़े अपन जिनगानी
जाँगर ला खपाके गढ़े अपन जिनगानी
मोर गाँव मा,
मोर गाँव के कहानी ला सुनावय
कहानी ला सुनावय झूम-झूम के

घानी के बईला कस जिनगी ल फाँदे
पीरा के बरोंड़ा मा वो मुचमुच हांसे
छितका होगे कुरिया टप-टप चूहत हावे छानी
छितका होगे कुरिया टप-टप चूहत हावे छानी
मोर गाँव मा,
मोर गाँव के कहानी ला सुनावय
कहानी ला सुनावय झूम-झूम के

डेरौठी मा बइठे वोला मन के मिलौना दीखे
पेज-पसिया, नून-चटनी कभू-कभू लाँघन सोये
पोचका पेट अऊ झेंझरा लुगरा जोही दीखे रानी
पोचका पेट अऊ झेंझरा लुगरा जोही दीखे रानी
मोर गाँव मा,
मोर गाँव के कहानी ला सुनावय
कहानी ला सुनावय झूम-झूम के