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"काश कि फिर वह सहर आती/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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तेरी आरज़ू है मुझे रात-दिन
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तेरी आरज़ू है रात-दिन
कभी तू इस रहगुज़र आती
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कभी तो इस रहगुज़र आती
  
पलकें सूख गयीं राह तकते
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पलकें सूख़ीं राह तकते
तेरी कोई खोज-ख़बर आती
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तेरी कुछ खोज-ख़बर आती
  
दरम्याँ रस्मो-रिवाज़ सही
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दरम्याँ रस्मो-रिवाज़ हैं
तू फिर भी इधर आती
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पर तू फिर भी इधर आती
  
सहाब दिखे हैं सूखे दरया पे
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कभी बारिश भी टूटकर आती
 
कभी बारिश भी टूटकर आती
  
मौतें मरकर मैंने देखी हैं
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कई मौतें मरकर देखीं
कभी ज़िन्दगी मेरे दर आती
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ज़िंदगी तू मेरे दर आती
  
क़रार आ जाता पलभर के लिए
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क़रार मिलता मेरे दिल को
मेरे ख़ाबों में तू अगर आती
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तू ख़ाबों में अगर आती
 
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'''शब्दार्थ:
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सहर: संध्या, सुबह, dawn, morning | सहाब: बादल, clouds
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02:27, 20 मार्च 2011 का अवतरण


रचना काल: 2004

काश कि फिर वह सहर<ref>सुबह</ref> आती
जब तू मुझको नज़र आती

तेरी आरज़ू है रात-दिन
कभी तो इस रहगुज़र आती

पलकें सूख़ीं राह तकते
तेरी कुछ खोज-ख़बर आती

दरम्याँ रस्मो-रिवाज़ हैं
पर तू फिर भी इधर आती

सहाब<ref>बादल</ref> हैं सूखे दरया पे
कभी बारिश भी टूटकर आती

कई मौतें मरकर देखीं
ज़िंदगी तू मेरे दर आती

क़रार मिलता मेरे दिल को
तू ख़ाबों में अगर आती

शब्दार्थ
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