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कितनी बार / जयप्रकाश कर्दम

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कब तक रोऊं कितनी बार
कितनी बार भुलाऊं बीते सपनों का संसार।
कितना आवेगों को रोका
कितना निज स्वासों को टोका
कितनी बार उबारी फिर-फिर
डूबी अपने मन की नौका
आशाओं के द्वार सजाए कितने वंदनवार।
कब तक रोऊं कितनी बार।

अरमानों का एक घरौंदा
कितना तोड़ा कितना रौंदा
फिर-फिर कल के अहसासों से
हाय करूं अब कितना सौदा
झंझाओं में डूबे फिर-फिर माझी और पतवार।
कब तक रोऊं कितनी बार।

क्यों होता मन आज विकल है
सारा संयम हुआ विफल है
आज मौन वाचाल मेरा क्यों
तन-मन की सब गति शिथिल है
कहां गयी वो आज सुरीली वीणा की झंकार।
कब तक रोऊं कितनी बार।

सूना तन है सूना मन है
नहीं कोई अब स्पंदन है
दिवसों ने ठुकराया मुझको
आज निशा का आमंत्रण है
कैसे रोकूं कामदेव का आना सौ-सौ बार।
कब तक रोऊं कितनी बार।