भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितने तुम अनुपम, अति सुन्दर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने तुम अनुपम, अति सुन्दर, मधुर, मनोहर हो प्यारे।
सुधा अनन्त पूर्ण, मधुमय तुम सबके जीवन-धन प्यारे॥
तुम्हीं विश्वमय, सभी विश्व के जड-चेतन तुम में, प्यारे!
एक-‌एक अणु अखिल जगत्‌‌ का सना तुम्हीं से है प्यारे॥
अतुल, असीम-‌अपार तुम्हारा है ऐश्वर्य परम प्यारे!
देव-दनुज-मुनि-मनुज चरण-रज सदा चाहते हैं प्यारे॥
पर न उन्हें देते कदापि तुम, हारे सभी नित्य प्यारे!
सर्व-रहित सर्वेश्वर वह तुम त्याग महान सब प्यारे॥
जाग रहे हो नित्य निभृत मम हृदय-कुज में हे प्यारे!
हो अधीर, अति विरहाकुल प्राणों से टेर रहे प्यारे॥
हँसी सदा मैं विविध कर्म-भोगों, जंजालोंमें प्यारे!
फिर भी मेरा संग चाहते, अतुल प्रीतिवश तुम प्यारे॥
मुझ दुर्गुणी, कुरूपापर हो कैसे रीझ गये प्यारे!
क्या सुख तुम पाते मुझसे, मैं समझ न पाती कुछ प्यारे॥
अपने मन की तुम्हीं जानते, नहीं बताते पर प्यारे!
केवल विवश हु‌ए रहते हो, तुलना नहीं, कहीं प्यारे॥