"किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे / सौदा" के अवतरणों में अंतर
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− | जो गुज़रे | + | जो गुज़रे सैद <ref>शिकार</ref> के दिल पर उसे शहबाज़<ref>शाही बाज़</ref> क्या समझे |
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− | रिहा करना हमें | + | रिहा करना हमें सैयाद<ref>शिकारी</ref> अब पामाल करना है |
− | फड़कना भी जिसे भूला हो सो | + | फड़कना भी जिसे भूला हो सो परवाज़<ref>उड़ान</ref> क्या समझे |
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− | न पूछो मुझसे मेरा हाल | + | न पूछो मुझसे मेरा हाल टुक<ref>ज़रा-सा</ref>दुनिया में जीने दो |
− | खुदा जाने मैं क्या बोलूँ कोई | + | खुदा जाने मैं क्या बोलूँ कोई ग़म्माज़<ref>चुग़लख़ोर</ref> क्या समझे |
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− | कहा चाहे था तुझसे मैं लेकिन दिल धड़कता है | + | कहा चाहे था तुझसे मैं लेकिन दिल धड़कता है |
− | कि मेरी बात के ढब को तू ऐ | + | कि मेरी बात के ढब को तू ऐ तन्नाज़<ref>व्यंग्य करने वाला</ref> क्या समझे |
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− | जो गुज़री रात मेरे पर किसे मालूम है तुझ बिन | + | जो गुज़री रात मेरे पर किसे मालूम है तुझ बिन |
− | दिले-परवाना का जुज़- | + | दिले-परवाना का जुज़-शमा<ref>शमा के अलावा</ref> कोई राज़ क्या समझे |
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− | न पढ़ियो ये ग़ज़ल ‘सौदा’ तू हरगिज़ ‘मीर’ के आगे | + | न पढ़ियो ये ग़ज़ल ‘सौदा’ तू हरगिज़ ‘मीर’ के आगे |
− | वो इन तर्ज़ों से क्या वाक़िफ़ वो ये अंदाज़ क्या समझे | + | वो इन तर्ज़ों से क्या वाक़िफ़ वो ये अंदाज़ क्या समझे |
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21:59, 17 मई 2009 के समय का अवतरण
किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे
जो गुज़रे सैद <ref>शिकार</ref> के दिल पर उसे शहबाज़<ref>शाही बाज़</ref> क्या समझे
रिहा करना हमें सैयाद<ref>शिकारी</ref> अब पामाल करना है
फड़कना भी जिसे भूला हो सो परवाज़<ref>उड़ान</ref> क्या समझे
न पूछो मुझसे मेरा हाल टुक<ref>ज़रा-सा</ref>दुनिया में जीने दो
खुदा जाने मैं क्या बोलूँ कोई ग़म्माज़<ref>चुग़लख़ोर</ref> क्या समझे
कहा चाहे था तुझसे मैं लेकिन दिल धड़कता है
कि मेरी बात के ढब को तू ऐ तन्नाज़<ref>व्यंग्य करने वाला</ref> क्या समझे
जो गुज़री रात मेरे पर किसे मालूम है तुझ बिन
दिले-परवाना का जुज़-शमा<ref>शमा के अलावा</ref> कोई राज़ क्या समझे
न पढ़ियो ये ग़ज़ल ‘सौदा’ तू हरगिज़ ‘मीर’ के आगे
वो इन तर्ज़ों से क्या वाक़िफ़ वो ये अंदाज़ क्या समझे