भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान / भगवत रावत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवत रावत |संग्रह= }} किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-...)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:49, 27 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण

किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान

तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है

न जाने कहाँ-कहाँ से इतनी जगह निकल आती है

कि दो-चार थके-हारे और आसानी से समा जाएं

भले ही कई बार हाथों-पैरों को उलाँघ कर निकलना पड़े

लेकिन कोई किसी से न टकराये।


जब रहता है, कमरे के भीतर थोड़ा-सा आसमान

तो कमरे का दिल आसमान हो जाता है

वरना कितना मुश्किल होता है बचा पाना

अपनी कविता भर जान !