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कुंज-कुंज नग़माज़न बसन्त आ गई / नासिर काज़मी
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कुंज-कुंज नग़माज़न बसन्त आ गई
अब सजेगी अंजुमन बसन्त आ गई
उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग-रंग
जगमगा उठा गगन बसन्त आ गई
मोहने लुभानेवाले प्यारे प्यारे लोग
देखना चमन चमन बसन्त आ गई
सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया
ले के ज़र्द पैरहन बसन्त आ गई
पिछले साल के मलाल दिल से मिट गये
ले के फिर नई चुभन बसन्त आ गई।