भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ आरज़ी उजाले / 'अज़हर' इनायती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:28, 19 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अज़हर' इनायती }} Category:गज़ल <poeM> कुछ आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग
मुट्ठी में जुगनुओं को छुपाए हुए हैं लोग.

उस शख़्स को तो क़त्ल हुए देर हो गई
अब किस लिए ये भीड़ लगाए हुए हैं लोग.

बरसों पुराने दर्द न इठखेलियाँ करें
अब तो नए ग़मों के सताए हुए हैं लोग.

आँखें उजड़ चुकी हैं मगर रंग रंग के
ख़्वाबों की अब भी फ़सल लगाए हुए हैं लोग.

क्या रह गया है शहर में खंडरात के सिवा
क्या देखने को अब यहाँ आए हुए हैं लोग.

कुछ दिन से बे-दिमाग़ी-ए-'अज़हर' है रंग पर
बस्ती में उस को 'मीर' बनाए हुए हैं लोग.