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कुछ आरज़ी उजाले / 'अज़हर' इनायती
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कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग
मुट्ठी में जुगनुओं को छुपाए हुए हैं लोग.
उस शख़्स को तो क़त्ल हुए देर हो गई
अब किस लिए ये भीड़ लगाए हुए हैं लोग.
बरसों पुराने दर्द न इठखेलियाँ करें
अब तो नए ग़मों के सताए हुए हैं लोग.
आँखें उजड़ चुकी हैं मगर रंग रंग के
ख़्वाबों की अब भी फ़सल लगाए हुए हैं लोग.
क्या रह गया है शहर में खंडरात के सिवा
क्या देखने को अब यहाँ आए हुए हैं लोग.
कुछ दिन से बे-दिमाग़ी-ए-'अज़हर' है रंग पर
बस्ती में उस को 'मीर' बनाए हुए हैं लोग.