भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
 +
[[category: ग़ज़ल]]
 
<poem>
 
<poem>
  
 
कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
 
कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
हमारे प्यार की खुशबू से भर गयी है रात
+
हमारे प्यार की ख़ुशबू से भर गयी है रात
  
 
कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
 
कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
 
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात
 
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात
  
ये शोखियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक्त!
+
ये शोख़ियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक्त!
 
कुछ और आप पे जादू-सा कर गयी है रात
 
कुछ और आप पे जादू-सा कर गयी है रात
  
 
हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
 
हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसी की शोख लटों में उतर गयी है रात
+
किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात
  
 
मिला न कोई महक दिल की तोलनेवाला
 
मिला न कोई महक दिल की तोलनेवाला
 
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात   
 
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात   
 
 
 
 
<poem>
 
<poem>

08:22, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
हमारे प्यार की ख़ुशबू से भर गयी है रात

कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात

ये शोख़ियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक्त!
कुछ और आप पे जादू-सा कर गयी है रात

हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात

मिला न कोई महक दिल की तोलनेवाला
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात