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"कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात | किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात | ||
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गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात | गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात | ||
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03:02, 7 जुलाई 2011 का अवतरण
कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
हमारे प्यार की ख़ुशबू से भर गयी है रात
कोई तो और भी महफ़िल वहाँ सजी होगी
उठाके चाँद-सितारे जिधर गयी है रात
ये शोख़ियाँ, ये अदाएँ कहाँ थीं दिन के वक्त!
कुछ और आप पे जादू-सा कर गयी है रात
हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसी की शोख़ लटों में उतर गयी है रात
मिला न कोई महक दिल की तौलनेवाला
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात