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कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-गम-ए-तन्हाई हो / मोहसिन नक़वी
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कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-गम-ए-तन्हाई हो
बात इतनी भी न बढ़ जाये कि रुसवाई हो
जिस ने भी मुझको तमाशा सा बना रखा है
अब ज़रूरी है वो ही आँख तमाशाई हो
डूबने वाले तो आँखों से भी खूब निकले हैं
डूबने के लिए लाजिम नहीं, गहराई हो
मैं तुझे जीत भी तोहफे में नहीं दे सकता
चाहता ये भी नहीं हूँ तेरी पासपाई हो
कोई अन्जान न हो शहर-ए-मोहब्बत का मकीं
काश हर दिल की हर इक दिल शहनसाई हो
यूँ गुज़र जाता है मोहसिन तेरे कूचे से वो
तेरा वाकिफ़ न हो जैसे कोई सौदाई हो ..!