भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ हम भी लिख गये हैं तुम्हारी किताब में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
  
 
लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ से आप
 
लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ से आप
कुछ खूबियाँ भी देखते खानाखराब में
+
कुछ ख़ूबियाँ भी देखते ख़ानाख़राब में
  
 
कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
 
कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
 
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में
 
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में
  
हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया  
+
हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया  
 
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में
 
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में
 
<poem>
 
<poem>

09:38, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


कुछ हम भी लिख गये हैं तुम्हारी किताब में
गंगा के जल को ढाल न देना शराब में

हम से तो ज़िन्दगी की कहानी न बन सकी
सादे ही रह गये सभी पन्ने किताब में

दुनिया ने था किया कभी छोटा सा एक सवाल
हमने तो ज़िन्दगी ही लुटा दी जवाब में

लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ से आप
कुछ ख़ूबियाँ भी देखते ख़ानाख़राब में

कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में

हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में