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केशव,कहि न जाइ / विनय पत्रिका / तुलसीदास

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केशव , कहि न जाइ का कहिये ।

देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये ।

शून्य भीति पर चित्र ,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे ।

धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे।

रविकर नीर बसै अति दारुन ,मकर रुप तेहि माहीं ।

बदन हीन सो ग्रसै चराचर ,पान करन जे जाहीं ।

कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै ।

तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम , सो आपुन पहिचानै ।