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"कोई ज़िद थी या समझ का फेर था / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर

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कोई ज़िद थी या समझ का फेर था।
 
कोई ज़िद थी या समझ का फेर था।
 
 
मान गए वो मैंने जब उल्टी कही।
 
मान गए वो मैंने जब उल्टी कही।
 
  
 
शक है काफ़िर को मेरे ईमान में।
 
शक है काफ़िर को मेरे ईमान में।
 
 
जैसे मैंने कोई मुँह देखी कही॥
 
जैसे मैंने कोई मुँह देखी कही॥
 
  
 
क्या खबर थी यह खुदाई और है।
 
क्या खबर थी यह खुदाई और है।
 
 
हाय! क्यों मैंने खु़दा लगती कही॥
 
हाय! क्यों मैंने खु़दा लगती कही॥
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19:03, 14 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

कोई ज़िद थी या समझ का फेर था।
मान गए वो मैंने जब उल्टी कही।

शक है काफ़िर को मेरे ईमान में।
जैसे मैंने कोई मुँह देखी कही॥

क्या खबर थी यह खुदाई और है।
हाय! क्यों मैंने खु़दा लगती कही॥