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कोई ढलते हुए सूरज का किनारा लिख दो / पूजा बंसल

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कोई ढलते हुए सूरज का किनारा लिख दो
मुझको शबनम से जला एक शरारा लिख दो

जिस कहानी में मुकम्मल नहीं किरदार मेरा
उसके किस्सों में अधूरा सा दुबारा लिख दो

किश्तें बाँधी हैं हक़ीक़त ने मेरे लम्हों की
हक़ तसव्वुर के ख़ज़ाने पे तुम्हारा लिख दो

दूरियाँ हिज़्र की या वस्ल रूहानी अपना
दिल को जज़्बात की गरमाई का पारा लिख दो

माँग टीके पे चुनर क़ायदे से ओढ़ी है
इसके गोटे में हर इक याद सहारा लिख दो

जिसको खुद रब ने नवाज़ा है अपनी रहमत से
उसी इक ताज के दर सदक़ा हमारा लिख दो

आरजू, चाहतें, अहसास या अरमाँ दिल के
जीत लीं शय सभी_बस तुमसे ही हारा लिख दो