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Kavita Kosh से
हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हींको हँसेंगे लोग
यह जिन्दगी ज़िन्दगी का साज़ कही कहीं बेसुरा न हो
पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार