भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 14 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो
मुमकिन नहीं कि उसको हमारा पता न हो

दिल का कभी हमारे तड़पना तो देखिये
जिस वक़्त इसके पास कोई दूसरा न हो

हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हीं को हँसेंगे लोग
यह जिन्दगी का साज़ कही बेसुरा न हो

पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार
शायद लिखा हो आपने शायद लिखा न हो

काँटों से यों न जाइए आँचल छुडाके आज
रुकिए कि एक गुलाब भी उनमें खिला न हो